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मध्य प्रदेश में एक और घोटाला: जबलपुर नगर निगम का कचरा परिवहन घोटाला

Monday, March 17, 2025 | March 17, 2025 WIB Last Updated 2025-03-17T20:29:49Z

 

मध्य प्रदेश में घोटालों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है। चम्मच घोटाला और डामर घोटाले के बाद अब जबलपुर नगर निगम में कचरा परिवहन घोटाला सामने आया है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने इस मामले में नगर निगम के दो पूर्व अधिकारियों समेत तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की है।

किन-किन अधिकारियों पर केस दर्ज?

इस मामले में रिटायर्ड अधिकारी विनोद श्रीवास्तव (स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम जबलपुर), अनिल जैन (सहायक स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम जबलपुर) और हेमंत करसा (अध्यक्ष, नेताजी सुभाषचंद्र बोस सफाई कामगार सहकारी समिति, रानीताल जबलपुर) को आरोपी बनाया गया है। इनके अलावा दो अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता भी सामने आई है।

कैसे हुआ घोटाला?

EOW की जांच में खुलासा हुआ कि नगर निगम के वार्ड क्रमांक-8 में कचरा परिवहन के नाम पर लाखों रुपये का गबन किया गया। सफाई कार्य के लिए 14,70,228 रुपये का बिल प्रस्तुत किया गया था। सत्यापन के बाद वास्तविक भुगतान 6,04,495 रुपये की अनुशंसा की गई थी, लेकिन आरोपियों ने फर्जी नोटशीट बनाकर 13,17,510 रुपये का भुगतान करा लिया। इससे नगर निगम को 8,20,233 रुपये का नुकसान हुआ।

जांच में क्या सामने आया?

  • फर्जी हस्ताक्षर: राज्य परीक्षक, प्रश्नास्पद प्रलेख, पुलिस मुख्यालय भोपाल की जांच में पाया गया कि नगर निगम के अधिकारी के.के. दुबे के हस्ताक्षर कूटरचित (फर्जी) थे।
  • IPC और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस:
    • धोखाधड़ी (धारा 420)
    • फर्जी दस्तावेज तैयार करना (धारा 467, 468, 471)
    • आपराधिक साजिश (धारा 120बी)
    • सरकारी पद का दुरुपयोग करके आर्थिक लाभ प्राप्त करना (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7)

पहले भी हुए घोटाले

जबलपुर नगर निगम पहले भी भ्रष्टाचार के कई मामलों में घिर चुका है:

  1. चम्मच घोटाला – सरकारी खरीद में महंगे चम्मच खरीदे गए।
  2. डामर घोटाला – सड़क निर्माण में अनियमितताएं पाई गईं।
  3. अब कचरा परिवहन घोटाला – सरकारी फंड में हेराफेरी का खुलासा।

क्या होगी आगे की कार्रवाई?

  • EOW जल्द ही अन्य संबंधित अधिकारियों से पूछताछ कर सकती है।
  • आरोपियों की संपत्तियों की जांच की जाएगी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि भ्रष्टाचार से अर्जित धन का उपयोग कहां किया गया।
  • आगे और भी अन्य नगर निगम अधिकारियों की भूमिका जांच के घेरे में आ सकती है।

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के बढ़ते मामलों ने एक बार फिर सरकारी संस्थानों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्रशासन इस पर सख्त कार्रवाई करेगा या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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